झारखण्ड की मिट्टियाँ (Jharkhand ki mittiyan)- soils of jharkhand

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झारखण्ड की मिट्टियाँ (Jharkhand ki mittiyan)- soils of jharkhand

झारखण्ड की मिट्टियाँ (Jharkhand ki mittiyan)- soils of jharkhand : दोस्तों हमलोग आज पढने वाले हैं झारखण्ड की मिट्टियों (Jharkhand ki mittiyan) के बारे में. झारखण्ड में कौन कौन से मिटटी पाई जाती है. किस-किस क्षेत्र में कौन-कौन सी मिटटी पाई जाती है, और मिटटी की विशेशताएँ.

तो झारखण्ड की मिट्टियाँ (Jharkhand ki mittiyan)- soils of Jharkhand के बारे में पूरी जानकारी पाने के लिए पोस्ट को आखिर तक जरुर पढ़े. आपको सभी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से मिलने वाली है. निचे आपको सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों की Quiz दिया गया है एक बार जरुर से प्रक्टिस करें.

  • निर्माण प्रक्रिया की दृष्टि से झारखण्ड में अवशिष्ट मिटटी (Residual Soil) पायी जाती है.
  • पठारी इलाकों में जमीं के अन्दर खनिज एवं चट्टानों के अपक्षयन के परिणामस्वरूप निर्मित अवशेष से बनी मिटटी अवशिष्ट मिटटी कहलाती है.
  • झारखण्ड में पायी जाने वाली मिटटी को 6 प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है.
Jharkhand ki mittiyan
Jharkhand ki mittiyan

झारखण्ड में मिटटी का वर्गीकरण

  1. लाल मिटटी ( Lal Mitti)
    • लाल मिटटी का विस्तार छोटानागपुर में है.
    • विशेषता- यह मिटटी झारखण्ड की सर्वप्रमुख मिटटी है. यह मिटटी छोटानागपुर के लगभग 90% भाग में पाई जाती है. दामोदर घाटी का गोंडवाना क्षेत्र तथा राजमहल उच्च भूमि को छोड़कर सम्पूर्ण छोटानागपुर क्षेत्र में लाल मिटटी की अधिकता है.इस मिटटी में फेरिक ऑक्साईड तथा बोक्साइड की अधिकता है जिसके कारण इसका रंग लाल हो जाता है. कहीं-कहीं इस मिटटी का रंग पिला, धूसर, भूरा और काला भी मिलता है. राज्य के हजारीबाग व कोडरमा कशेर में अभ्रक मूलक लाल मिटटी तथा सिंहभूम व धनबाद के कुछ भागों में लाल-काली मिश्रित मिटटी पाई जाती है.

      निस एवं ग्रेनैत के अवशेष से निर्मित हिने तथा नाइट्रोजन,फास्फोरस और ह्यूमस की कमी से युक्त होने के कारण इसकी उर्वरा शक्ति कम होती है. यह मिटटी ज्वार,बाजरा,रागी,गणना, मूंगफली आदि की खेती हेतु अत्यंत उपयुक्त होती है.

  2. काली मिटटी (Kali Mitti)
    • राजमहल पहाड़ियों में विस्तृत है.
    • विशेषता – इस मिटटी को रेगुर मिटटी भी कहा जाता है तथा यह काले एवं भूरे रंग की होती है. इस मिटटी का निर्माण अत्यंत बारीक़ कणों से होता है. अतः पानी पड़ने पर यह मिटटी चिपचिपा हो जाती है. इस मिटटी में लौह, चुना, मैग्नेशियम तथा एलोमिना का मिश्रण पाया जाता है.इस मिटटी में नाइट्रोजन, जैविक पदार्थ तथा, फास्फोरिक एसिड की कमी पाई जाती है. बेसाल्ट के अपक्षयन से निर्मित यह मिटटी कपास की खेती हेतु अत्यंत उपयोगी है किन्तु राजमहल क्षेत्र में इस मिटटी में धान एवं चने की खेती की जाती है.
  3. लेटेराइट मिटटी (Leterait Mitti)
    • ये मिटटी पलामू का दक्षिणी क्षेत्र, राँची का पश्चिमी क्षेत्र, संथाल परगना, पूर्वी राजमहल क्षेत्र सिंहभूम का धालभूम क्षेत्र में विस्तृत है.
    • विशेषता – लेटेराइट मिटटी गहरे लाल रंग की होती है तथा इसमें कंकड़ की अधिकता होती है. इस मिटटी का निर्माण मानसूनी जलवायु की आद्रता तथा शुष्कता में क्रमिक परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियां के प्रभावस्वरूप हुआ है. इस मिटटी में लौह ऑक्साइड की अधिकता होती है तथा यह कम उर्वर मिटटी है. सिंचाई साधनों की सहायता से इसमें मुख्यतः चावल तथा मोटे अनाज की कृषि की जाती है.
  4. रेतीली मिटटी (Retili Mitti)
    • रेतीली मिटटी पूर्वी हजारीबाग व धनबाद में विस्तृत है.
    • विशेषता – इस मिटटी में लाल तथा पीले रंग का मिश्रण पाया जाता है. इस मिटटी में मोटे अनाजों की कृषि की जाती है, दामोदर घाटी क्षेत्र में मूलतः फुसफुस बलुई मिटटी पाई जाती है.
  5. जलोढ़ मिटटी (Jalodh Mitti)
    • संथाल परगना में विस्तृत है.
    • विशेषता – यह झारखण्ड में पाई जानेवाली नवीनतम मिटटी जिसमें मृदा परिच्छेदिका का विकास नहीं हुआ है. झारखण्ड राज्य में भंगार (पुराना जलोढ़) एवं खादर (नवीनतम जलोढ़) दोनों प्रकार की जलोढ़ मृदा पाई जाती है.राज्य में साहेबगंज के उत्तरी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में भंगार तथा पूर्वी भाग एवं पाकुड़ जिले के क्षेत्र में खादर मिटटी पाई जाती है. इस मिटटी में चुना एवं पोटाश की अधिकता जबकि नाइट्रोजन एवं ह्यूमस की कमी पाई जाती है. धान एवं गेहूं के लिए यह अत्यंत उपयुक्त मिटटी है.
  6. अभ्रक्मुलक मिटटी (Abhrakmul mitti)
    • यह मिटटी कोडरमा, मांडू, झुमरी तिलैया एवं बडकागांव में विस्तृत है.
    • विशेषता – अभ्रक के खानों के समीप यह मिटटी पाई जाती है. कोडरमा, झुमरी तिलैया, मांडू और बडकागांव के क्षेत्र में इस मिटटी के पाए जाने के कारण इस क्षेत्र को अभ्रक पट्टी के नाम से जाना जाता है. इस मिटटी का रंग हल्का गुलाबी होता है तथा कुछ स्थानों पर नमी की कमी के कारण इसका रंग पिला हो जाता है. यह मिटटी अत्यंत उपजाऊ होती है लेकिन इन क्षेर्त्रो में जल की कमी के कारण इस मिटटी में समुचित ढंग से कृषि कार्य संभव नहीं हो पाया है.
  7. अपरदित कगारों की मिटटी
    • तीव्र ढालयुक्त क्षेत्र में विस्तृत
    • विशेषता – यह मिटटी पतली तथा पथरीली है. यश निम्न उर्वरता वाली मिटटी है. इसमें सुरगुजा, कुरथी, मक्का आदि की खेती की जाती है.
  8. उच्च भूमि की धूसर-पिली मिटटी
    • ये मिटटी पलामू तथा गढ़वा के ऊँचे पठारी क्षेत्र में पाई जाती है.
    • विशेषता – इस मिटटी की उर्वरता माध्यम से उच्च स्टार की होती है.
  9. धात्विक गुणों से युक्त मिटटी
    • ये मिटटी पश्चिमी सिंहभूम का दक्षिणी भाग में विस्तृत है.
    • विशेषता – इस मिटटी का रंग लालिमायुक्त होता है. यह मिटटी कम उर्वर होता है.
  10. विषमजातीय मिटटी
    • पश्चिमी सिंहभूम के मध्यवर्ती एवं उत्तरी भाग तथा सरायकेला के क्षेत्र में विस्तृत है.
    • विशेषता – यह मिटटी विभिन्न मूल के चट्टानों के अवशेषों के मिश्रण से निर्मित होती है. उच्च भूमि में इसका रंग पिला तथा निम्न भूमि में काला व धूसर होता है. इसमें माध्यम स्टार की उर्वरता पाई जाती है.
  • मिटटी का स्थानीय नाम
    • चिकनी मिटटी – केवाल,चिटा,नगरा,गोबरा,हलमाद,हासा
    • दोमट मिटटी – खेरसी, चरका, लोबो, बालसुन्दर,आराहासा
    • बालुई दोमट मिटटी – बाला, गोरिस, जारिया, गीटालहासा
  • भूमि का स्थानीय नाम
    • टांड (ऊँची भूमि) – दिहार, भीठा, बहारसी, बारी
    • दोन (नीची भूमि) – गडहा, गोरिस,घोघरा,जाह,चौउरा,कनारी

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